Monday, January 24, 2011

दहलीज़

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दहलीज़

पहली उम्र के
वे अहसास
वे विश्वास
वे चेहरे
वे रिश्ते
अभी भी चल रहे हैं
मेरे साथ-साथ।

यादों के कुछ कंवल
अभी भी मन की झील में
तैर रहे हैं ज्यों के त्यों।

सुन्दर-सलौने सपने
अभी भी पलकों के नीचे
अंकुरित हो रहे हैं
उसी तरह।

तितलियों को पकड़ने की
उम्र के चाव
अभी भी मेरी हथेलियों पर
फुदक-फुदक कर नाच रहे हैं।
इन्द्र्धनुष के सातों रंग
अभी भी मेरी आँखों में
खिलखिलाकर हँस रहे हैं।

मेरे अन्दर की सरल-सी लड़की
अभी भी दो चुटियाँ करके
हाथ में किताबें थामे
कालेज में सखियों के संग
ज़िन्दगी के स्टेज पर
गिद्धाडालती है।

हैरान हूँ कि
मन के धरातल पर
कुछ भी नहीं बदलता
पर आहिस्ता-आहिस्ता
शीशे में अपना अक्स
बेपहचान हुआ जाता है।
00
(
सुरजीत जी की उक्त दोनों कविताओं का हिन्दी अनुवाद तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग आरसीमें छपी उनकी पंजाबी कविताओं से किया गया है।)

प्रस्तुतकर्ता सुभाष नीरव पर १०:२५ अपराह्न 7 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक


Monday, January 17, 2011

गुमशुदा

गुमशुदा

बहुत सरल लगता था
कभी
चुम्बकीय मुस्कराहट से
मौसमों में रंग भर लेना

सहज ही
पलट कर
इठलाती हवा का
हाथ थाम लेना

गुनगुने शब्दों का
जादू बिखेर
उठते तुफानों को
रोक लेना

और बड़ा सरल लगता था
ज़िन्दगी के पास बैठ
छोटी-छोटी बातें करना
कहकहे मार कर हँसना
शिकायतें करना
रूठना और
मान जाना…

बड़ा मुश्किल लगता है
अब
फलसफों के द्वंद में से
ज़िन्दगी के अर्थों को खोजना
पता नहीं क्यों
बड़ा मुश्किल लगता है…
00

Monday, January 10, 2011

एक दिया


एक दिया

इस बार जब

दीवाली के दिए जलाएं

तो एक दिया

उनके नाम का भी जलाना

जो हाथों में मशालें पकड़

काफिलों के आगे हो चले !

हक्क और सच की जीत की खातिर

हकूमतों से लड़े

और आने वाली पीडिओं का

रास्ता सवांरने के लिए

सूलिओं पे चड़े !

एक दिया उनके नाम का भी जलाना

जिनकी कुर्बनिओं की

कभी भी किसी ने भी चर्चा न की

जिनके परिवार वालों ने

उनकी दी कुर्बनिओं की खातिर

ज़ुल्म सहे

और खुद्कशियां कीं !

इस दीवाली

उनके नाम का बस

एक दिया जला देना

बस एक दिया !

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