फाइलों से जूझता शख्स
पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव
रोज़ सूरज
समुन्दर में जा गिरता है
रोज़ चन्द्रमा
रात से मिलता है
रोज़ पखेरू
पंख फड़फड़ाता हुआ
घर को लौटता है !
एक शख्स
अभी भी
दफ्तर की
फाइलों से जूझता
भूल गया घर का रास्ता।
सुरजीत
ठहर गया ... चलता-चलता समुन्द्र भी जरुर इसने मेरा ख़त पढ़ लिया होगा ....!!
Monday, January 23, 2012
तस्वीरें और परछाइयाँ
तस्वीरें और परछाइयाँ
पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव
मैं जो
मैं नहीं हूँ
किसी शो-विंडों में
एक पुतले की तरह
ख़ामोश खड़ी हूँ !
कुछ रिश्तों
कुछ रिवायतों से मोहताज !
बाहर से ख़ामोश हूँ
अन्दर ज़लज़ला है
तुफ़ान है
अस्तित्व और अनस्तित्व के
इस पार,
उस पार खड़ा एक सवाल है-
कि मैं जो मैं हूँ
मैं क्या हूँ ?
पु्स्तकालय से समाधी तक
इस सच को तलाशते हुए
सोचती हूँ
मैं जिस्म हूँ
कि जान हूँ !
मेजबान हूँ
कि मेहमान हूँ !!
ज़िन्दगी
मौत
रूह
और मोक्ष
शब्दों के अर्थ तलाशती
सोचती हूँ
आख़िर मैं कौन हूँ !
तस्वीरों की जून में पड़कर
ख़ामोश ज़िन्दगी को व्यतीत करते
कई बार
अहसास होता है
कि मैं केवल
हारे-थके रिश्तों की
मर्यादा हूँ !!
या शायद
मैं कुछ भी नहीं
न रूह, न जिस्म
न कोई मर्यादा-
केवल एक
जीता जागता धड़कता
दिल ही हूँ !
तभी तो जब
रिश्ते टूटने का अहसास होता है
तो निगल जाता है
मेरा दिल
मेरा विवेक !!
मैं जो मैं नहीं हूँ
अपने आप को
रिश्तों की दीवार पर
टिका रखा है !
मैं जो मैं हूँ
इन तस्वीरों के
तिड़के शीशों में से निकल कर
परछाइयों की जून पड़ गई हूँ !!
पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव
मैं जो
मैं नहीं हूँ
किसी शो-विंडों में
एक पुतले की तरह
ख़ामोश खड़ी हूँ !
कुछ रिश्तों
कुछ रिवायतों से मोहताज !
बाहर से ख़ामोश हूँ
अन्दर ज़लज़ला है
तुफ़ान है
अस्तित्व और अनस्तित्व के
इस पार,
उस पार खड़ा एक सवाल है-
कि मैं जो मैं हूँ
मैं क्या हूँ ?
पु्स्तकालय से समाधी तक
इस सच को तलाशते हुए
सोचती हूँ
मैं जिस्म हूँ
कि जान हूँ !
मेजबान हूँ
कि मेहमान हूँ !!
ज़िन्दगी
मौत
रूह
और मोक्ष
शब्दों के अर्थ तलाशती
सोचती हूँ
आख़िर मैं कौन हूँ !
तस्वीरों की जून में पड़कर
ख़ामोश ज़िन्दगी को व्यतीत करते
कई बार
अहसास होता है
कि मैं केवल
हारे-थके रिश्तों की
मर्यादा हूँ !!
या शायद
मैं कुछ भी नहीं
न रूह, न जिस्म
न कोई मर्यादा-
केवल एक
जीता जागता धड़कता
दिल ही हूँ !
तभी तो जब
रिश्ते टूटने का अहसास होता है
तो निगल जाता है
मेरा दिल
मेरा विवेक !!
मैं जो मैं नहीं हूँ
अपने आप को
रिश्तों की दीवार पर
टिका रखा है !
मैं जो मैं हूँ
इन तस्वीरों के
तिड़के शीशों में से निकल कर
परछाइयों की जून पड़ गई हूँ !!
पागल मुहब्बत
पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव
पागल मुहब्बत
मेरी मुहब्बत को ही
यह पागलपन क्यों है
कि तू रहे मेरे संग
जैसे रहते है मेरे साथ
मेरे साँस
तसव्वुर में तू है
इंतज़ार में तू है
नज़र में तू है
अस्तित्व में भी तू !
मेरी मुहब्बत को
यह कैसा पागलपन है
कि मेरे दुपट्टे की छोर में
तू चाबियों के गुच्छे की तरह बंधा रहे !
मेरे पर्स की तनी की भाँति
मेरे कंधे पर लटका रहे !
मैंने ही क्यूँ ऐसे इंतज़ार किया तेरा
जैसे बादवान
हवा की प्रतीक्षा करते है
जैसे बेड़े
मल्लाहों का इंतज़ार करते हैं!
मेरी ही सोच क्यूँ
तेरे दर पर खड़ी हो गई है
मेरी नज़र ही क्यूँ
तेरी तलाश के बाद
पत्थर हो गई है !
पागल मुहब्बत
मेरी मुहब्बत को ही
यह पागलपन क्यों है
कि तू रहे मेरे संग
जैसे रहते है मेरे साथ
मेरे साँस
तसव्वुर में तू है
इंतज़ार में तू है
नज़र में तू है
अस्तित्व में भी तू !
मेरी मुहब्बत को
यह कैसा पागलपन है
कि मेरे दुपट्टे की छोर में
तू चाबियों के गुच्छे की तरह बंधा रहे !
मेरे पर्स की तनी की भाँति
मेरे कंधे पर लटका रहे !
मैंने ही क्यूँ ऐसे इंतज़ार किया तेरा
जैसे बादवान
हवा की प्रतीक्षा करते है
जैसे बेड़े
मल्लाहों का इंतज़ार करते हैं!
मेरी ही सोच क्यूँ
तेरे दर पर खड़ी हो गई है
मेरी नज़र ही क्यूँ
तेरी तलाश के बाद
पत्थर हो गई है !
Saturday, December 10, 2011
निर्वाण
निर्वाण
जब भी मैं
चौकड़ी मार
रीड़ की हड्डी सीधी कर
दो उन्गलिओं के पोरों को जोड़
पुरातन योगिओं की भांति
आँखें मूँद कर
ध्यान में बैठने की
कोशिश करती हूँ
तो
अचानक मुझे
घेर लेता है
अजीबो गरीब चिंतन !
चलचित्र की भांति दौड़ते हैं
आस पास घट रही
खौफनाक घटनाओं के ख्याल !
शून्य होने को लोचता मन
कर लेता है इकठ्ठा
कूड़ा करकट !
चिंतन की पिटारी में
भर जाता है
टी वी पर चलती
ख़बरों का सहम
अख़बारों में पड़ी
सुर्खिओं का डर
संसार भर में फैला आतंक !
लगता है हर लम्हा
मेरे विरुद्ध साजिश घड रहा है !
ऊर्जा संजोने की
कोशिश में लगे
मेरे रोम रोम में
विस्फोट हो जाता है !
डर कर आँखें खोल
देखती हूँ इधर-उधर
क्या मुझे कभी
निर्वाण मिलेगा !
Friday, November 18, 2011
फिर कभी
अभी अधूरा है
तलाश का सफर
अभी पकड़ रहीं हूँ
पानी में घुल गई
अपनी परछाई
अभी गिन रही हूँ
हवा में मिल गये
सांसों के साल
ढून्ढ रही हूँ
चले हुए कदमों के
[[[[[[[रास्ते
सुनती हूँ
शब्दों में गुम्म
अपने हिस्से के
गीतों के बोल
छोड़ आई हूँ पीछे
कितनी मंजिलों के
मील पत्थर !
अभी मेरा चिन्तन अधूरा
अधूरी नज्में
अधूरी ज़िन्दगी की परिभाषा !
ढून्ढ रही हूँ
अधूरी हस्ती का
गुम्म हुआ आधापन
अभी तो मैं रहूंगी अधूरी
पूर्ण हूँगी फिर कभी !
Tuesday, October 25, 2011
पल
सखी अब मुझे
इक पल में जीना
जो हो रहा है
होता रहेगा
कोई हंसता है
मैं भी हंस दूं
कोई गाए तो
गाने लगूं
नाचता है कोई तो
मैं भी नाचूं
अगर कोई रोये
तो रोने न दूं
दुख में समय
गवाने न दूं
इक पल का
बस जीवन
अगले पल क्या होगा
क्या पता !
जब मैं ही न रहूंगी
क्या बचा
क्या पडा है
मुझे क्या लेना ?
जो है
बस यही पल है
इस पल में रह सकुं
बस यही है इच्छा !
सुरजीत - मेरी पुस्तक 'हे सखी' में से
--
Sunday, February 13, 2011
तू मिलना ज़रूर…
तू मिलना ज़रूर…
सुरजीत
सुरजीत
हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव
तू बेशक
कड़कती धूप बनकर मिलना
या गुनगुनी दोपहर की गरमाहट बन
घोर अंधेरी रात बनकर मिलना
या सफ़ेद-दुधिया चाँदनी का आँगन बन
मैं तुझे पहचान लूँगी
खिड़की के शीशे पर पड़तीं
रिमझिम बूँदों की टप-टप में से
दावानल में जलते गिरते
दरख़्तों की कड़-कड़ में से
मलय पर्वत से आतीं
सुहानी हवाओं की
सुगंधियों में मिलना
या हिमालय पर्वत की
नदियों के किनारे मिलना
धरती की कोख में पड़े
किसी बीज में मिलना
या किसी बच्चे के गले में लटकते
ताबीज़ में मिलना
लहलहाती फ़सलों की मस्ती में
या गरीबों की बस्ती में मिलना
पतझड़ के मौसम में
किसी चरवाहे की नज़र में उठते
उबाल में मिलना
या धरती पर गिरे सूखे पत्तों के
रिमझिम बूँदों की टप-टप में से
दावानल में जलते गिरते
दरख़्तों की कड़-कड़ में से
मलय पर्वत से आतीं
सुहानी हवाओं की
सुगंधियों में मिलना
या हिमालय पर्वत की
नदियों के किनारे मिलना
धरती की कोख में पड़े
किसी बीज में मिलना
या किसी बच्चे के गले में लटकते
ताबीज़ में मिलना
लहलहाती फ़सलों की मस्ती में
या गरीबों की बस्ती में मिलना
पतझड़ के मौसम में
किसी चरवाहे की नज़र में उठते
उबाल में मिलना
या धरती पर गिरे सूखे पत्तों के
उछाल में मिलना
मैं तुझे पहचान लूँगी…
मैं तुझे पहचान लूँगी…
किसी भिक्क्षु की चाल में से
किसी नर्तकी के नृत्य की लय में से
किसी वीणा के संगीत में से
किसी हुजूम के शोर में से।
तू मिलना बेशक
किसी अभिलाषी की आँख का आँसू बन
किसी साधक के ध्यान का चक्षु बन
किसी मठ के गुम्बद की गूँज बन
या रास्ता खोजता सारस बन
तू मिलना ज़रूर
मैं तुझे पहचान लूँगी।
किसी नर्तकी के नृत्य की लय में से
किसी वीणा के संगीत में से
किसी हुजूम के शोर में से।
तू मिलना बेशक
किसी अभिलाषी की आँख का आँसू बन
किसी साधक के ध्यान का चक्षु बन
किसी मठ के गुम्बद की गूँज बन
या रास्ता खोजता सारस बन
तू मिलना ज़रूर
मैं तुझे पहचान लूँगी।
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