सखी अब मुझे
इक पल में जीना
जो हो रहा है
होता रहेगा
कोई हंसता है
मैं भी हंस दूं
कोई गाए तो
गाने लगूं
नाचता है कोई तो
मैं भी नाचूं
अगर कोई रोये
तो रोने न दूं
दुख में समय
गवाने न दूं
इक पल का
बस जीवन
अगले पल क्या होगा
क्या पता !
जब मैं ही न रहूंगी
क्या बचा
क्या पडा है
मुझे क्या लेना ?
जो है
बस यही पल है
इस पल में रह सकुं
बस यही है इच्छा !
सुरजीत - मेरी पुस्तक 'हे सखी' में से
--