सखी अब मुझे
इक पल में जीना
जो हो रहा है
होता रहेगा
कोई हंसता है
मैं भी हंस दूं
कोई गाए तो
गाने लगूं
नाचता है कोई तो
मैं भी नाचूं
अगर कोई रोये
तो रोने न दूं
दुख में समय
गवाने न दूं
इक पल का
बस जीवन
अगले पल क्या होगा
क्या पता !
जब मैं ही न रहूंगी
क्या बचा
क्या पडा है
मुझे क्या लेना ?
जो है
बस यही पल है
इस पल में रह सकुं
बस यही है इच्छा !
सुरजीत - मेरी पुस्तक 'हे सखी' में से
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पल के महत्त्व को बहुत भाव गरिमा के साथ प्रस्तुत किया गया है । ये पंक्तियां बहुत पसन्द आईजो है
ReplyDeleteबस यही पल है
इस पल में रह सकूँ
बस यही है इच्छा
Sundar bhav..
ReplyDeleteHi.. Maine kal ek tippani di thi jaane kaise wo post nahi hui.. Barhaal aaj se main aapke blog ke anusaran main hun..aapki aur kavitaon ki pratiksha hai..
ReplyDeleteDeepak shukla..