Tuesday, October 25, 2011

पल

सखी अब मुझे
इक पल में जीना
जो हो रहा है
होता रहेगा
कोई हंसता है
मैं भी हंस दूं
कोई गाए तो
गाने लगूं
नाचता है कोई तो
मैं भी नाचूं
अगर कोई रोये
तो रोने न दूं
दुख में समय
गवाने न दूं

इक पल का
बस जीवन
अगले पल क्या होगा
क्या पता !

जब मैं ही न रहूंगी
क्या बचा
क्या पडा है
मुझे क्या लेना ?

जो है
बस यही पल है
इस पल में रह सकुं
बस यही है इच्छा !

सुरजीत - मेरी पुस्तक 'हे सखी' में से
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3 comments:

  1. पल के महत्त्व को बहुत भाव गरिमा के साथ प्रस्तुत किया गया है । ये पंक्तियां बहुत पसन्द आईजो है
    बस यही पल है
    इस पल में रह सकूँ
    बस यही है इच्छा

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  2. Hi.. Maine kal ek tippani di thi jaane kaise wo post nahi hui.. Barhaal aaj se main aapke blog ke anusaran main hun..aapki aur kavitaon ki pratiksha hai..

    Deepak shukla..

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