Monday, January 23, 2012

फाइलों से जूझता शख्स

फाइलों से जूझता शख्स

पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव

रोज़ सूरज
समुन्दर में जा गिरता है
रोज़ चन्द्रमा
रात से मिलता है
रोज़ पखेरू
पंख फड़फड़ाता हुआ
घर को लौटता है !

एक शख्स
अभी भी
दफ्तर की
फाइलों से जूझता
भूल गया घर का रास्ता।

5 comments:

  1. रोज़ सूरज--- जब समुन्दर में जा गिरता है
    रोज़ चन्द्रमा--- जब रात से मिलता है
    रोज़ पखेरू ----जब पंख फड़फड़ाता हुआ
    घर को लौटता है !
    वोह शख्स अभी भी घर का रास्ता भूला नहीं , फाइलों से जूझता,

    सिर्फ यह फाइलें उसके रास्ते में बिखर गई हैं कांटे बनके !

    उसके पाँव तो पेहले ही से शिल चुके हैं /थे

    जीवन की ना-इन्साफियाँ के रास्तों पे चलते चलते ! ,

    कम पगार की नोकरी, फाइलों की गुलामी के कांटे; पांओं के छाले,

    लोग घरों के रास्ते भूलते नहीं

    जिंदगी की बे इन्सफियाँ

    पायों को जीवन के रास्तों पर चलनें को दुशवार बना देती हैं

    घरों के रास्ते कभी भी दफ्तर की फाइलों से झुझते हुए भूला नहीं करते ! सिर्फ ....ये फाइलें घर के रास्तों में कांटे कर बिखर जाती हैं

    बहुत कुछ छुपाये हुए है ,बिन बोल्ये ,अपने आप में सुरजीत जी की यह जीवन -पीड़ा भरी रचना !

    जसमेर

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  2. बहुत बढ़िया

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  3. दीपावली की अनंत शुभकामनाएँ!!
    नया पोस्ट.. प्रेम सरोवर पर देखें।

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