Monday, January 17, 2011

गुमशुदा

गुमशुदा

बहुत सरल लगता था
कभी
चुम्बकीय मुस्कराहट से
मौसमों में रंग भर लेना

सहज ही
पलट कर
इठलाती हवा का
हाथ थाम लेना

गुनगुने शब्दों का
जादू बिखेर
उठते तुफानों को
रोक लेना

और बड़ा सरल लगता था
ज़िन्दगी के पास बैठ
छोटी-छोटी बातें करना
कहकहे मार कर हँसना
शिकायतें करना
रूठना और
मान जाना…

बड़ा मुश्किल लगता है
अब
फलसफों के द्वंद में से
ज़िन्दगी के अर्थों को खोजना
पता नहीं क्यों
बड़ा मुश्किल लगता है…
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6 comments:

  1. सचमुच जीवन पहेली बन कर कितना उलझ जाता है, लेकिन इसे सुलझाने का रोमांच भी कम आकर्षक चुनौती नहीं.
    Rahul Singh

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  2. आपने ज़िन्दगी की सचाई ब्यान कर दी है.काफी अच्छी कविता है

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  3. an emphatic way
    to explain the psychology of life..
    nice write !

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  4. इन फलसफों के बीच ही ये कहकहे कहीं दब कर रह जाते हैं सुरजीत जी .....
    ज़िन्दगी के द्वन्द को पेश करती सशक्त रचना ....!!

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  5. सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
    भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
    बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
    हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
    धन्यवाद....
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  6. आप अपने ब्लाग की सेटिंग मे(कमेंट ) शब्द पुष्टिकरण ।
    word veryfication पर नो no पर
    टिक लगाकर सेटिंग को सेव कर दें । टिप्प्णी
    देने में झन्झट होता है ।

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